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भारत में प्राकृतिक संसाधनों के कुशल प्रबंधन के लिए ज़रूरी है जनसँख्या नियंत्रण

Siddhant Mishra
July 26, 2020 |

संयुक्त राष्ट्र संघ के ‘आर्थिक व सामाजिक कल्याण विभाग’ द्वारा जून 2019 में जारी की गई ‘वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्ट्स’, 2019 की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2050 तक विश्व की जनसंख्या मौजूदा जनसंख्या से 26 % तक बढ़कर 9.7 बिलियन हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्र संघ की यह रिपोर्ट यह भी बताती है की भारत उन देशों की सूची में शामिल है जहाँ 2019 से 2050 के मध्य जनसँख्या में सर्वाधिक वृद्धि होगी। ऐसा अनुमान है कि भारत की जनसँख्या में वर्ष 2019 से 2050 के मध्य 27.3 करोड की वृद्धि होगी। ‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ (UNFPA) की रिपोर्ट के आंकलन के अनुसार भारत की जनसँख्या 2010-19 के मध्य 1.2 % की दर से बढ़ी। जनसंख्या की दृष्टि से विश्व का सबसे बड़े देश ,जो हमारा पड़ोसी राष्ट्र भी है ,चीन में जनसंख्या वृद्धि की यह दर वर्ष 2010-19 के मध्य 0.5 % की रही है

( मसूरी की मॉल रोड जो अक्सर भीड़ से खचा खच भरी रहती है. फोटो: ट्रिप एडवाइजर )

हालाँकि भारत ने ‘जनसँख्या स्थिरता’ के क्षेत्र में बहुत से प्रयास भी किए हैं। भारत, विश्व का वह पहला राष्ट्र है जिसने ‘परिवार नियोजन’ की आवश्यकता को समझते हुए वर्ष 1952 में ही ‘राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम’ की शुरुवात की। यही नहीं वर्ष 1966 में भारत सरकार ने स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत ,परिवार नियोजन को लेकर एक विशेष विभाग का निर्माण किया। वर्ष 1977 में जनता पार्टी की सरकार में ‘नई जनसंख्या नीति’ के माध्यम से परिवार नियोजन की महत्ता को रेखांकित किया गया। हालाँकि इसमें सहभाग लेने को पूर्ण रूप से व्यक्ति की ‘स्वेक्षा’ का विषय माना गया । समय समय पर सरकारें इस ओर प्रयास करती आई हैं।

इन प्रयासों का परिणाम है कि जनसंख्या स्थिरता के संदर्भ में महत्वपूर्ण सूचकांक के रूप में देखे जाने वाले ,महिलाओं में ‘कुल प्रजनन दर’ (Total Fertility Rate) में कमी आयी है। ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (चार) (NFHS 4) की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय महिलाओं में ‘कुल प्रजनन दर’ ‘2.2 बच्चे प्रति महिला’ ,दर्ज की गई है। NFHS ‘3’ की रिपोर्ट के अनुसार यह दर 2.7 दर्ज की गई थी ,जो मौजूद दर से 0.5 ज्यादा थी । यह एक सकारात्मक संकेत है।

भारत इस संदर्भ में ‘आदर्श दर’ जिसे ‘फर्टिलिटी रिप्लेसमेंट रेट’ (Fertility Replacement Rate) कहा जाता है, जो कि 2.1 है ,के बहुत करीब है। केरल (1.7), तमिलनाडु (1.6),  कर्नाटका (1.7), महाराष्ट्र (1.7), आंध्र प्रदेश (1.6) , तेलंगाना (1.7), पश्चिम बंगाल (1.6), जम्मू और कश्मीर (1.6) जैसे राज्यों में तो यह दर ‘फर्टिलिटी रिप्लेसमेंट रेट’ से भी कम हो गयी है। हालांकि इस संदर्भ में उत्तर भारत के राज्य जैसे उत्तर प्रदेश (3.0), बिहार (3.2), मध्य प्रदेश (2.7) ,राजस्थान (2.6) जैसे राज्यों को और प्रयास करने की आवश्यकता है।

भारत में इस जनसँख्या विस्फोट का एक कारण विवाह, तलाक व गोद लेने संबंधी कानूनों में समानता का अभाव भी है। भारत में ‘समान नागरिक संहिता’ (UNIFORM CIVIL CODE) के विषय को सदैव राजनीति के साधन के रूप में ही देखा गया है। संविधान निर्माताओं ने समान नागरिक संहिता के महत्व को समझते हुए इसे ‘राज्य के नीति निर्देशक तत्वों’ की सूची में शामिल किया था और आने वाली पीढ़ियों से यह अपेक्षा की थी कि वह इस संदर्भ में हर संभव प्रयास करेंगे ,किंतु जनकल्याण से जुड़ा यह महत्वपूर्ण विषय वर्षों से राजनीतिक दलों के आपसी संघर्ष के मध्य फँस कर रह गया है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही , स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में लाल किले की प्राचीर से, जनसंख्या नियंत्रण के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने इसके लिए ‘जन सहभागिता’ का आह्वान भी किया। प्रधानमंत्री ने जनसंख्या नियंत्रण में सहभागिता को ‘राष्ट्रभक्ति’ का एक साधन बताया।

बढ़ती हुई ये जनसँख्या अधिक से अधिक संसाधनों के दोहन को प्रेरित करती है, हमें भविष्य में इस्तेमाल हेतु भी अपने संसाधनों का संचय करना होगा, अतः यदि हम भारत को दुनिया का नेतृत्व करने वाला भारत बनाने का सपना देखते हैं तो हमें जनसंख्या स्थिरता के मानकों को शीघ्र अति शीघ्र प्राप्त करने की ओर कदम बढ़ाने होंगे।

हमें इस बात का भी विशेष ध्यान रखना होगा कि हमारे यह प्रयास ‘जनभागीदारी’ पर आधारित हों न कि जोर जबरदस्ती के साधनों पर। हमें ज्ञात है कि वर्ष 1975 के करीब, विशेषकर इमरजेंसी के दौर में, ‘परिवार नियोजन’ को जोर जबरदस्ती से क्रियान्वित करने के प्रयास हुए, जिसका लोगों के मनोविज्ञान पर दुष्प्रभाव साफ देखने को मिला। अतः हमें ‘जनसँख्या स्थिरता’ के लक्ष्य प्राप्ति के प्रयासों को जनांदोलन की शक्ल देने होगी।जागरूकता अभियानों ,महिलाओं की शिक्षा पर अधिक व्यय, आदि अनेकों प्रयास हमारी सरकारों ने किये भी हैं और इन्हें आगे भी और अधिक व्यापक रूप में जारी रखना होगा।

ये लेखक के निजी विचार हैं

( लेखक राजनीति विज्ञान (मास्टर्स) – ईस्वर सरन डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्र हैं )

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